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शरीर के तीन आयाम और उसकी ज़रूरत।
स्वस्थ शरीर पाने के लिए शरीर के तीन स्तर पर कार्य करना ज़रूरी है। शरीर के इन तीनों स्तरों पर काम करने से शरीर स्वस्थ रहता है प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के मूलभूत 10 सिद्धांतों में से पूर्णता (total approach) एक अहम सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अन्तर्गत हमारी काया के उत्तम स्वास्थ्य के लिए भी तीन स्तरों पर अनुकूल खुराक देने की आवश्यकता होती है। आइये हम इन काया और इनके खुराकों के बारे में जानें:
1. अतिसूक्ष्म काया: (spiritual/energy body) इसकी खुराक - आकाश (space and to support the propagation of electromagnetic waves) और वायु (air) तत्व है।
आकाश तत्व - इसके अंतर्गत स्रोत पाठ, मंत्र जप - जैसे गायत्री मंत्र, रामनाम, ॐ मंत्र, इत्यादि का जप आदि आता है।
वाद्य यंत्र - शास्त्रीय संगीत (instrumental classical music) - बाँसुरी, सितार, तबला, वीणा, इत्यादि अलग अलग राग समयानुसार बजाया जाए जैसे भीम पलासी, राग भैरवी, मियाँ की तोड़ी, राग यमन इत्यादि।
उपवास - मतलब एक खाने से दूसरे खाने के बीच 3 से 4 घंटे का लघु अंतराल (gap)। 6 से 7 का मध्यम अंतराल। 13 से 14 घंटे का दीर्घ अंतराल। ये सहज उपवास शरीर को स्वस्थ रखने का सबसे तेज़ उपाय है।
ऐसा करने से स्थूल शरीर को पोषक तत्व मिल पाता है। सूक्ष्म शरीर को ऑक्सिजन मिलता है। अतिसूक्ष्म शरीर में विद्युत चुंबकीय तरंगें (electromagnetic waves) activ हो पाता है। जो की शरीर में खनिज लवण के संतुलन को बनाए रखता है।
यह शरीर में किसी भी विटामिन और खनिज लवण (mineral) की कमी नहीं होने देता है।
वायु- इस शून्य में वायु सबसे उत्तम तरीक़े से बाह्य कुंभक और आंतरिक कुंभक द्वारा शरीर के सभी विषाणुओं को नष्ट करती है। लंबा गहरा स्वाँस अंदर भरें और रुकें फिर पूरे तरीक़े से स्वाँस को ख़ाली करें रुकें फिर स्वाँस अंदर भरें ये एक चक्र हुआ। ऐसे 10 चक्र एक टाइम पर करना चाहिए। अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, शीतलि, उज्जायी प्राणायाम इत्यादि करें।
ख़ुशबूदार ताजे फूलों को आस पास रखना चाहिए। कपूर जलाएँ या समरानी धूप जलाएँ।
लयबद्ध तरीक़े से साँस लेना और छोड़ना और उन साँसों के प्रति सजग रहना, जंगल या खुले स्थान पर टहलना, बैठना, खुले हवा में लेटना।
ऐसा करने से शरीर में दूषित विषाणुओं का क्षय होता है। शरीर में ऑक्सिजन का प्रवाह तीव्र गति से होता है। जो की आंतरिक संक्रमण को नष्ट कर देता है।
2. सूक्ष्म काया (mind) का खुराक अग्नि तत्व (ऊर्जा) (energy) है।
अग्नि तत्व - ऊर्जा का स्रोत है। सूर्य दर्शन (sungazing) - 5 मिनट तक उगते हुए सूर्य या डूबते हुए सूर्य दर्शन करके हाँथों को आपस में रगड़ कर 5 मिनट तक आँखों पर रखें।
सूर्य स्नान - सूर्य उदय के एक घंटे बाद या सूर्य अस्त के एक घंटे पहले का धूप शरीर को ज़रूर लगाएँ। सर और आँख को किसी सूती कपड़े से ढक कर। जब भी लेंटे अपना दायाँ भाग ऊपर करके लेटें ताकि आपकी सूर्य नाड़ी सक्रिय रहे।
ऐसा करने से सूक्ष्म शरीर में ऊर्जा का संचार होता है जो की कार्य को पूर्ण करने के लिए ज़रूरी है।
योगासन - कोई भी कार्य को करते वक़्त सजग रहें कि मेरुदंड (spine) हमेशा सीधा रहे।
सूर्य नमस्कार, ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, कटिचक्र आसन इत्यादि आसन करें। शारीरिक व्यायाम जैसे कि तैराकी, दौड़, रस्सी कूदना, साइकिल चलाना इत्यादि करें।
ऐसा करने से रक्त संचार में शुद्धि आती है और ऊर्जा को सुरक्षा मिल पाता है।
3. स्थूल काया (gross body) का खुराक जल और पृथ्वी है।
जल (water) - नहाने के पानी में ख़ुशबू वाले फूलों का रस या नींबू या पुदीना का रस मिश्रित स्नान, खाना खाने से एक घंटे पहले नाभि के ऊपर गीला सूती कपड़ा लपेट कर या खाना के 2 घंटे बाद की पट्टी। पैरों को पानी में डुबो कर 20 मिनट के लिए रखना, मिट्टी का लेप, कच्चे हरे पत्ते और सब्ज़ियों का लेप। मेरुदंड स्नान के लिए अगर टब ना हो तो एक मोटा तौलिया गीला कर लें बिना निचोरे उसको बिछा लें और अपने मेरुदंड को उस स्थान पर रखें।
मेरुदंड (spine) स्नान। किसी टब में पानी डाल कर उसमें 20 मिनट के लिए बैठें। नितम्ब स्नान (Hip bath), पैरों को 20 मिनट के लिए सादे पानी से भरे किसी बाल्टी या टब में डूबो कर रखें। तेल से घड़ी की सीधी दिशा (clockwise) में और घड़ी की उलटी दिशा (anti clockwise) में मालिश।
कच्चे हरे साग सब्ज़ी का जूस।
सुबह ख़ाली पेट इनमे से कोई भी हरा जूस लें। पेठे (ashguard ) का जूस लें और नारियल पानी भी ले सकते हैं। बेल का पत्ता 8 से 10 पीस कर 100ml पानी में मिला कर छान कर पीएँ। खीरा 1/2 भाग + धनिया पत्ती (10 ग्राम) पीस लें, 100 ml पानी में मिला कर पीएँ। दुब घास 25 ग्राम पीस कर छान कर 100 ml पानी में मिला कर पीएँ। दोपहर के खाने पहले और रात को खाने से 1 घंटे पहले लें।
ऐसा करने से प्रदाह (inflammation) ठीक होता है। शरीर की अशुद्धियाँ (toxins) निकल जाते हैं।
पृथ्वी (earth)- स्पर्श चिकित्सा यानी शरीर को सहलाना नरम हाथ का स्पर्श देना। ख़ाली पैर मिट्टी पर चलना, मिट्टी में काम करना अपने लिए फल, फूल, सब्ज़ी उगाना। फल और सूखा फल - मौसम के अनुसार केवल एक तरीक़े का फल को नाश्ते में लें। फल के साथ अगर मीठे की तलब हो तो खजूर, किसमिस, अंजीर इत्यादि पानी में भिगोकर लें। कच्चे सब्ज़ियों का सलाद जैसे सलाद में हरे पत्तेदार सब्ज़ी को डालें और नारियल पीस कर मिलाएँ। कच्चा पपीता 50 ग्राम कद्दूकस करके डालें। कभी सीताफल (yellow pumpkin) 50 ग्राम ऐसे ही डालें। कभी सफ़ेद पेठा (ashgurad) 30 ग्राम कद्दूकस करके डालें। ऐसे ही ज़ूकीनी 50 ग्राम डालें। कद्दूकस करके डालें।कभी काजू बादाम अखरोट मूँगफली भिगोए हुए पीस कर मिलाएँ। लाल, हरा, पीला शिमला मिर्च 1/4 हिस्सा हर एक का मिलाएँ। मेवे अंकुरित अनाज को सलाद में मिलाएँ।
ऐसा करने से स्थूल शरीर को वो पोषक तत्व मिलता है जो उसकी ज़रूरत है। आयु में स्थूल शरीर की वृद्धि होती है। प्राणशक्ति (vital energy) की सुरक्षा होती है। जब हमारी प्राणशक्ति हमें ऊर्जा दे रही होती है तो वह स्वास्थ्य की स्थिति है। जब हमारी प्राण शक्ति हमारे शरीर के अंदर विषाणुओं (toxic) को साफ़ करने में लग जाती है तो वह अस्वस्थ होने की स्थिति होती है।
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